जिस प्रकार बाजार में किसी उत्पाद की कीमत उसको बनाने वाले औद्योगिक घराने की प्रतिष्ठा पर निर्भर करती है उसी प्रकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक देश की प्रतिष्ठा उसकी आंतरिक और बाह्य सुरक्षा की स्थिति के अनुसार निर्धारित होती है ।
तो क्या शाहीन बाग धरने के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति की मौजूदगी में दिल्ली में हुए दंगों तथा गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय स्मारक लाल किले की प्राचीर पर तिरंगे के स्थान पर एक धर्म विशेष का झंडा फहराने घटना के बाद क्या विश्व समुदाय हमारे देश की आंतरिक सुरक्षा के प्रति अच्छी राय रखेगा । बजट सत्र के अभिभाषण में स्वयं देश के राष्ट्रपति ने इस घटना की निंदा की है ।
इन घटनाओं के बाद क्या भारत को विकसित देशों की श्रेणी में रखा जा सकता है । और क्या भारत को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता का मजबूत दावेदार माना जा सकता है । इन दोनों पहलुओं पर देशवासी स्वयं विचार करेंगे तो विश्व के अन्य देशों की तुलना में उन्हें भारी निराशा होगी । अक्सर पाकिस्तान में जब कोई धरना प्रदर्शन या धमाका होता है तो देशवासी यह सोच कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं कि हमारा देश पाकिस्तान से कहीं बेहतर है । परंतु क्या अब हमारी उपरोक्त स्थितियों को देखते हुए पाकिस्तान यह महसूस नहीं कर रहा होगा कि भारत भी हमारी जैसी स्थिति में ही है ।
क्या भारत को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता का मजबूत दावेदार माना जा सकता है ।
गणतंत्र दिवस की घटना के बाद यह विचारणीय है कि देश के राष्ट्रीय स्मारक लाल किले पर एक अराजक और देश विरोधी तत्व सरेआम उसकी प्राचीर पर चढ़कर आराम से अपना झंडा लगा रहा था और वहां पर मौजूद केंद्रीय सुरक्षा बल के कर्मी उसके इस कृत्य को असहाय स्थिति में मूकदर्शक बनकर देखते रह गए । इस शर्मनाक कृत्य को करके वह व्यक्ति उसके लाल किले जैसे सुरक्षित स्थान से गायब हो जाता है ।
होना तो यह चाहिए था कि जब कोई तक देश की आन बान शान कहे जाने वाले राष्ट्रीय ध्वज और खासकर लाल किले की प्राचीरपर चढ़ने की कोशिश कर रहा था उसी समय उसी समय रोका जाना चाहिए थाऔर उसे पकड़ कर कानून के हवाले करना चाहिए था । यदि ऐसा हुआ होता तो पूरे विश्व में संदेश जाता कि भारतवासी अपनी अस्मिता पर कोई आंच नहीं आने देते ।
आंतरिक सुरक्षा
हमारे देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा पैदा करने वाले कारणों में मुख्यतः सत्ता संघर्ष, सांप्रदायिकता, क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा, अंतरराष्ट्रीय झगड़े, रिजर्वेशन तथा वाममार्गी कट्टरपंथी है । परंतु पिछले कुछ समय से हमारे देश में सत्ता संघर्ष आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बन कर उभरा है । इसके उदाहरण है कश्मीर से धारा 370 हटाने और नागरिकता संशोधन कानून के पारित होने के बादसे जो स्थिति देखने में आ रही है उससे यही प्रतीत होता है कि यह सब जन आंदोलन नहीं है बल्कि यह केंद्रीय सरकार के विरुद्ध एक सशस्त्र विद्रोह है ।
प्रजातंत्र में विरोध का अधिकार हर नागरिक को होता है परंतु हमारे जैसे देशों में यह विरोध देशवासियों की स्वयं की सोच से नहीं होता बल्कि यहां पर सत्ता के लालच में इसकी रूपरेखा विपक्षी दल तैयार करते हैं । और जैसे ही विरोध की चिंगारी शुरू होती है उसी समय मौके का फायदा उठाकर इसमें राष्ट्र विरोधी तत्व शामिल हो जाते हैं । जिनका संचालन विदेशों मैं बैठे राष्ट्र विरोधी तत्व या दुश्मन देश करते हैं ।
चीन द्वारा पाकिस्तान में आर्थिक गलियारा बनाने के बाद चीन पाकिस्तान के शासकों को खुश करने के लिए उसके साथ हर भारत विरोधी गतिविधि में शामिल होता है । भारत द्वारा धारा 370 तथा नागरिक संशोधन कानून के पारित होने के बाद पाकिस्तान को कश्मीर हड़पने के सपने धूमिल होते नजर आ रहे हैं ।
इस कारण पाकिस्तान की आईएसआई वहां पर पल रहे खालिस्तानी आतंकवादियों और मुस्लिम कट्टरपंथी तत्व जैसे पीएफआई इत्यादि के द्वारा भारत के अंदर उठे हर प्रकार के विरोध को उग्र रूप देकर इसे एक सशस्त्र विद्रोह का रूप देदेती हैं । अब इसी प्रकार मौजूदा किसान आंदोलन में पाकिस्तान में पल रहे बब्बर खालसा तथा इसी प्रकार के अन्य आतंकी संगठनों की भूमिका साफ नजर आ रही है ।
शाहीन बाग तथा किसान आंदोलन को लंबा चलाने तथा इस बहाने देश में दंगे भड़काने के लिए बड़ी बड़ी धनराशि इन धरने प्रदर्शनों को चलाने वालों के लिए विदेशों से आ रही है । धरना स्थल पर ऐसो आराम के सारे साधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं । किसान आंदोलन और शाहीन बाग धरने में हिस्सा लेने वाले प्रदर्शनकारियों ने बताया है की उन्हें प्रतिदिन के हिसाब से एक निश्चित धनराशि मजदूरी के रूप में दी जा रही है । इसके अतिरिक्त देश के विभिन्न भागों से इतने ट्रैक्टरों को दिल्ली तक लाने में लाखों लीटर डीजल का खर्चा भी इन्हीं तत्वों ने किया है ।
मौके पर जांच करने से पता लगा है कि इन धरने प्रदर्शनों में ज्यादातर प्रभावित किसान मौजूद नहीं है बल्कि यह सब देश के अराजक और बेरोजगारी नौजवान के द्वारा कराया जा रहा है ।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा
यहां पर सबसे सोचनीय बात यह है कि देश विरोधी तत्व तथा सत्ता के संघर्ष में राजनीतिक दल तो इस प्रकार की स्थिति पैदा करते रहे हैं और करते रहेंगे परंतु देश के शासन तंत्र के द्वारा इन अनैतिक गतिविधियों को नियंत्रित करने की क्या रणनीति है ।
दुर्भाग्य से हमारे देश में सामंती सोच अभी भी मौजूद है जिसके कारण देश का शासन तंत्र यह सोचकर धरने प्रदर्शन जैसी गतिविधियों को यह समझ कर चलने देता है कि यह लोग स्वयं थक कर इसे बंद कर देंगे या इन प्रदर्शनों के दौरान प्रदर्शनकारी स्वयं ऐसी हरकत कर देंगे जिससे देशवासियों की सहानुभूति सरकार के साथ हो जाएगी और इसके साथ साथ देश की सरकारे आंतरिक सुरक्षा की कीमत पर अपनी लोकप्रियता को बरकरार रखने के लिए ऐसे आंदोलनों और विरोध को अनदेखा करती रहती है अन्यथा देश के राष्ट्रीय पर्व पर दिल्ली पुलिस के द्वारा दिल्ली में ट्रैक्टर मार्च की मनाई के बावजूद देश के गृह मंत्रालय ने क्यों इन ट्रैक्टरों को दिल्ली में आने दिया ।
जबकि गणतंत्र दिवस के मौके पर पूरा विश्व मीडिया दिल्ली में मौजूद रहता है काफी दिनों से तरह-तरह की अफवाह आ रही थी कि किस प्रकार ट्रैक्टरों को दिल्ली में जबरदस्ती घुसाने के लिए तैयार किया जा रहा है । परंतु फिर भीकेंद्रीय बल और दिल्ली पुलिस इससे बेखबर सी नजर आई जिसके कारण जगह जगह अवरोधों को पार करते हुए यह प्रदर्शनकारी दिल्ली के ज्यादातर हिस्से में पहुंच गए ।
इसके अतिरिक्त यह भी विचार करने योग्य है की लाल किला जिस में प्रवेश के लिए केवल दो ही द्वार हैं तब यहां की सुरक्षा करने वाले सुरक्षाकर्मियों ने इन दरवाजों को मजबूती से बंद क्यों नहीं किया । और यदि कोई अराजक तत्व इन दरवाजों को तोड़ने की कोशिश कर रहा था तो उन्होंने बल प्रयोग क्यों नहीं किया । गोपनीय सूत्रों से पता लगा है कि लाल किले में मौजूद सुरक्षा बल के अधिकारी से जब एक पत्रकार ने यह पूछा की आप इन अराजक तत्वों के विरुद्ध बल प्रयोग क्यों नहीं कर रहे हैं तो इसको सुनकर वह चुप रह गया । उसकी चुप्पी उसकी असहाय स्थिति को बयान करने के लिए पर्याप्त थी ।
यहां पर यह भी सोचना चाहिए कि पूरे 6 महीने तक शाहीन बाग धरने के समय पूरी दक्षिण दिल्ली के निवासियों की व्यापारिक गतिविधियां ठप रही और उनके बच्चे स्कूल भी नहीं जा सके इसी प्रकार पिछले 2 महीने से दिल्ली के सारे सीमावर्ती क्षेत्रों के निवासियों को तरह तरह की रुकावट और मुसीबतों को झेलना पड़ रहा है यह किस अपराध की सजा भुगत रहे हैं ।
क्या कोई न्यायालय या कंजूमर फोरम इनकी क्षतिपूर्ति करेगा तो इसका उत्तर है मौजूदा स्थिति में यह इसी प्रकार चलता रहेगा । क्योंकि देश की कानून व्यवस्था को नियंत्रित करने वाले पुलिस के पास ना तो उचित कानून है और ना ही उनके पास आधुनिक साजो सामान है जैसा कि देश के एक प्रसिद्ध भूत पूर्व पुलिस अधिकारी श्री प्रकाश सिंह ने अपने लेख में लिखा है ।
हमारे देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा पैदा करने वाले कारणों में मुख्यतः सत्ता संघर्ष, सांप्रदायिकता, क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा, अंतरराष्ट्रीय झगड़े, रिजर्वेशन तथा वाममार्गी कट्टरपंथी है ।
यदि उपरोक्त गणतंत्र दिवस तरह की घटना सीमा पर हो जाती तो उस क्षेत्र की रक्षा के लिए नियुक्त सैनिक अधिकारी के विरुद्ध अब तक कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया शुरू हो जाती और इस प्रकार की स्थिति में जब दुश्मन हमला कर रहा है उस वक्त यदि कोई सैनिक निष्क्रियता या कायरता दिखाता है तो उसके लिए मौत की सजा तक का प्रावधान है । तो क्या लाल किले में राष्ट्रीय ध्वज की बेज्जती के लिए जिम्मेदार अधिकारी के विरुद्ध इस प्रकार की कार्यवाही होगी ।
परंतु यहां पर यह तथ्य सामने आता है कि देश में अभी तक गुलाम भारत को अपने नियंत्रण में रखने के लिए अंग्रेजों का लागू किया हुआ पुलिस कानून 1861ही लागू है । इस कानून के द्वारा एक पुलिस अधिकारी को केवल अपने शासकों की इच्छा के अनुसार ही कार्य करने की छूट है । वह अपने विवेक से इस प्रकार की स्थितियों में कोई कदम नहीं उठा सकता ।
इस कानून को प्रजातांत्रिक व्यवस्था के अनुरूप बनाने के लिए 2007 में देश की उच्चतम न्यायालय ने अपना निर्णय दिया है परंतु सत्ता पर पकड़ बनाए रखने के लिए देश के ज्यादातर राज्यों ने उच्चतम न्यायालय के इन निर्देशों को लागू ही नहीं किया है । इसके अतिरिक्त देश में अराजक तत्वों को पनपनेदेने में देश की न्याय व्यवस्था का भी बहुत बड़ा हाथ है ।
देश की न्याय व्यवस्था को चलाने वाले कानून भी अंग्रेजों के द्वारा ही बनाए गए हुए हैं । यह कानून अब नए समय में तथा नई तकनीक के जमाने में करीब-करीब अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं । आजकल डिजिटल युग में अराजक तत्व साइबर अपराध करके जनता का धन लूट रहे हैं और पुराने कानूनों के द्वारा इन पर शिकंजा नहीं कसा जा रहा है ।
इसके अतिरिक्त विदेशों में बैठे देश विरोधी तत्व आराम से अपने एजेंटों को रियल टाइम के अनुसार निर्देशित कर रहे हैं और उन्हें धन उपलब्ध करा कर देश विरोधी गतिविधियां चला रहे हैं । परंतु अभी तक प्रभावशाली तरीके से इन परशिकंजा नहीं कसा जा सका है । इन सब बातों से देश में चारों तरफ अराजक और देश विरोधी तत्व सक्रिय हो कर देश की आंतरिक सुरक्षा को कमजोर करते रहते हैं ।
भारतीय जनता पार्टी की सरकार से देश की जनता यह उम्मीद कर रही थी कि यह सरकार राष्ट्रीयता की भावना के अनुरूप देश विरोधी तत्वों के विरुद्ध सख्ती से पेश आएगी । परंतु 2016 में हरियाणा में हुए जाट आंदोलन के समय हुई हिंसा उसके बाद नागरिकता संशोधन कानून के बाद दिल्ली में हुए दंगों तथा अब गणतंत्र दिवस पर इस शर्मनाक हरकत के बाद देशवासी काफी निराश महसूस कर रहे हैं ।
इसलिए अब देश की केंद्रीय सरकार को देश के आधारभूत ढांचे की तरह ही देश की पुलिस तथा न्याय व्यवस्था को इतना सक्षम बनाना चाहिए जिससे वह देश में कानून का राज स्थापित कर सके और देश का हर नागरिक स्वयं को सुरक्षित महसूस करें ।