जब चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (क्वाड) की शुरुआत की गई थी, तब इसे अनिवार्य रूप से राजनयिकों में बढ़ती सैन्य व्यवस्था और व्यापक रूप से चीन की बढ़ती आर्थिक एवं सैन्य क्षमता के मद्देनजर उसकी बढ़ती शत्रुता की प्रतिक्रिया के रूप में देखा गया था।
हालांकि इसके केंद्र में चीनी हुकूमत द्वारा दक्षिण चीन सागर के बड़े इलाकों पर किया जा रहा दावा था, क्योंकि चीन दक्षिण चीन सागर के आसपास के कई दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के क्षेत्रीय अधिकारों को खत्म करना चाहता है। इस लिहाज से मौजूदा परिस्थितियों में क्वाड में भारत की बढ़ती भूमिका का एक बड़ा महत्व है।
गौरतलब है कि 2007 में पूर्व जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे द्वारा ऑस्ट्रेलियाई पूर्व प्रधानमंत्री जॉन हार्वर्ड, पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व अमेरिकी उपराष्ट्रपति डिक चेनी के समर्थन से चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (क्वाड) की स्थापना की गई थी। अमेरिका ने जब इस अभियान के नेतृत्व की भूमिका संभाली, तो उसने भारत-अमेरिका रक्षा के लिए नए फ्रेमवर्क पर हस्ताक्षर करने के साथ ही सैन्य संबंधों, रक्षा उद्योग और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और ‘समुद्री सुरक्षा सहयोग ढांचे’ की स्थापना के लिए भारत के साथ सहयोग बढ़ाया। इसके बाद भारत और अमेरिका के बीच बड़े पैमाने पर कई संयुक्त सैन्य अभ्यास हुए।
वर्ष 2022 में आयोजित कई कार्यकारी स्तर की बैठकों में भारतीय प्रतिनिधियों ने यह स्पष्ट करने की कोशिश की कि क्वाड ‘किसी के खिलाफ’ (अर्थात चीन) नहीं है, बल्कि ‘कुछ चीजों के खिलाफ’ है।
आतंकवाद और परमाणु प्रसार का मुकाबला करने के लिए अमेरिकी वैश्विक रणनीति को बढ़ावा देने के लिए सहस्राब्दी की शुरुआत से ही जापान और ऑस्ट्रेलिया इस रणनीतिक गठबंधन में शामिल हो गए थे, हालांकि सहभागी देशों को कोरिया से ऑस्ट्रेलिया तक फैले प्रशांत महासागर पर रणनीतिक गारंटी की पूरी उम्मीद थी। संक्षेप में गठबंधन का बड़ा उद्देश्य समुद्री संचार मार्गों में हस्तक्षेप को रोकना था।
लेकिन 2010 से थोड़ा पहले ऑस्ट्रेलियाई सरकार के पीछे हटने से यह व्यवस्था टूट गई, और शीर्ष स्तर पर संवाद की फिर से बहाली 2021 में पिछले चार वर्षों से चल रही गतिविधि के चरम पर फलीभूत हुई। क्वाड सदस्यों द्वारा एक स्पष्ट घोषणा में मुक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए साझा दृष्टिकोण को बढ़ावा देने का उल्लेख किया और पूर्व एवं दक्षिण चीन सागर में एक नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था की हिमायत की। उनके मुताबिक, चीनी समुद्री दावों का मुकाबला करने के लिए यह जरूरी था।
चीनी शासन ने इसका जोरदार विरोध किया था और इसे एशियाई नाटो कहा था, जो विशेष रूप से चीन का मुकाबला करने के लिए बना है। भारतीय विदेश मंत्री ने इन आरोपों का खंडन किया था, और इसे नाटो कहकर भ्रम फैलाने को झूठ करार दिया था।
वर्ष 2022 में आयोजित कई कार्यकारी स्तर की बैठकों में भारतीय प्रतिनिधियों ने यह स्पष्ट करने की कोशिश की कि क्वाड ‘किसी के खिलाफ’ (अर्थात चीन) नहीं है, बल्कि ‘कुछ चीजों के खिलाफ’ है। चीन पर नजर रखने वाले कई भारतीय प्रेक्षकों ने इसे भारतीय अभिव्यक्ति की मधुरता के रूप में देखा, जबकि कई लोगों ने सवाल उठाया कि अगर यह चीन के खिलाफ नहीं है, तो फिर इसके गठन का मकसद क्या है?
भारत के क्वाड के सदस्यों के साथ सैन्य अभ्यास
हमें चीन के साथ सीमा विवादों के समाधान के संदर्भ में भारत द्वारा सामना किए जा रहे रणनीतिक परिदृश्यों की जांच करनी चाहिए। हमें ध्यान रखना चाहिए कि चीन के साथ 1962 से चल रहे कई पुराने विवाद अभी सुलझे नहीं है, जबकि 2020 के बाद कई नए विवाद सामने आ गए हैं, जैसे गलवान की घटना। इन नए विवादों के त्वरित समाधान के लिए भारत सरकार अपने रवैये में लचीलापन व्यक्त करना चाहती है। हालांकि केंद्र सरकार के शीर्ष स्तर से यह दावा किया गया है कि भारतीय क्षेत्र में कोई घुसपैठ नहीं हुई है। इसलिए अपने रवैये में नरमी रखते हुए भारत को एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाना पड़ा।
चूंकि इधर के घटनाक्रम में रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध खत्म होता नहीं दिख रहा है, इसलिए भारत को दो अलग-अलग समूहों (अमेरिका एवं उसके सहयोगी और रूस एवं चीन के बीच मजबूत गठजोड़) के बीच अपनी स्थिति संतुलित करने की जरूरत थी। चूंकि भारत के आर्थिक हित और सामरिक उद्देश्य एक-दूसरे से गहराई से जुड़े थे, इसलिए संयम ही अकेला समाधान प्रतीत होता था।
अतः भारत ने जोर-शोर से युद्ध की जरूरत को खारिज किया। ऐसा दृष्टिकोण भारत के व्यापक हित में है और स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में इसके विकास के बाद से जारी नीतियों के अनुरूप भी है। इस संदेश का वैश्विक असर हुआ। राष्ट्र ऐसे सुविचारित रुख अपनाने के लिए जाने जाते हैं, जिसमें सभी जोखिम शामिल होते हैं, हालांकि लोकतांत्रिक देशों में रणनीतिक निर्णयों को जनता से साझा करने की आवश्यकता होती है।
भारतीय सैन्य कूटनीति भारत के रणनीतिक रुख का एक बहुत ही शक्तिशाली सहायक है, लेकिन इन बारीकियों को समझाने की जरूरत है।
दूसरी ओर भारत ने क्वाड के सदस्यों के साथ सैन्य अभ्यास करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, जो सही मायने में गठबंधन की रणनीतिक प्रकृति का प्रदर्शन करता है। भारत जापान, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया के साथ-साथ प्रशांत क्षेत्र के 26 देशों के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास कर चुका है। जापान ने 2022 में मालाबार नौसेना अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया, भारत और अमेरिका की मेजबानी की। इस वर्ष मालाबार शृंखला अभ्यास की 26वीं पुनरावृत्ति है, जो अमेरिका और भारत के बीच 1992 में शुरू हुई थी। इस अभ्यास का दायरा और इसमें साझेदारी बढ़ी है, और अब इसमें जापान एवं ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हैं।
भारतीय सैन्य कूटनीति भारत के रणनीतिक रुख का एक बहुत ही शक्तिशाली सहायक है, लेकिन इन बारीकियों को समझाने की जरूरत है। हालांकि भारत ने अपने आर्थिक हितों और रणनीतिक उद्देश्यों को बहुत ही शानदार ढंग से दुनिया के सामने रखा है, लेकिन बेहतर होगा कि भारत सरकार अपने रुख को थोड़ा और स्पष्ट करे।
पाकिस्तान को छोड़कर सार्क के सभी सदस्य देशों के साथ भारत की नियमित पारस्परिक यात्राएं होती हैं। नेपाल के साथ हमारे संबंध बहुत खास हैं, क्योंकि पारस्परिक व्यवहार में सेना प्रमुखों को दूसरे देश में मानद पद प्राप्त होता है। भारत सार्क देशों (पाकिस्तान को छोड़कर) के जवानों के लिए सैन्य प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित करता है।
–This story was earlier published on www.amarujala.com