चीनी रवैया भयावह रूप से बदल रहा है। भले ही शी जिनपिंग की सरकार भारत को वर्तमान स्वास्थ्य आपदा में चिकित्सा सहायता की पेशकश करने के लिए आगे आई है, मगर चीन का मीडिया और कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) का मुखपत्र आपदा से निपटने के भारतीय प्रयासों का मजाक उड़ा रहे हैं।
वर्तमान में भारत में रहने वाले चीनी नागरिकों को उकसाया जा रहा है कि वे यहां से बीमार मरीजों के वीडियो रिकॉर्ड कर चीनी मीडिया को भेजें। चीन पर नजर रखने वाले जाने-माने भारतीयों ने तस्वीरों में दिखाई जा रही सड़कों पर ऐसे कई मरते हुए लोगों की पहचान की है। उसके साथ की जा रही टिप्पणियों में सहानुभूति के बजाय नेताओं का उपहास किया जा रहा है। क्या दुनिया को चीन से यही उम्मीद करनी चाहिए, जो कि प्राचीन सभ्यता होने का दावा करता है। या फिर यह सब कहीं चीन का दिमागी खेल तो नही हैं।
हैरान करने वाली बात यह है कि चीनी शासन की भूमिका की जांच पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चुप्पी साध ली है और महामारी से जुड़ी सूचना को अधर में लटका दिया है। चीनी मीडिया घरानों की हरकत के लिए डब्ल्यूएचओ की विफलता जिम्मेदार है। इसी तरह दक्षिण एशिया में सरकारों से सामरिक लाभ प्राप्त करने के लिए चीनी सामरिक तंत्र रणनीतिक पैंतरेबाजी कर रहा है, क्योंकि ये देश कोविड-19 से जूझ रहे हैं।
चीनी रक्षा मंत्री के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने कुछ दिन पहले बांग्लादेश और श्रीलंका का दौरा किया था। बांग्लादेश में लंबे समय से किया जा रहा चीनी निवेश ऐसे ऋण हैं, जो अनिवार्य रूप से सामरिक ताकत और सड़क क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इसके केंद्र में चीनी रोड ऐंड बेल्ट परियोजना है, जिसके जरिये म्यांमार के बंदरगाहों को बांग्लादेश के बंदरगाहों से जोड़ा जाएगा।
यह अनिवार्य रूप से एक रणनीतिक युद्धाभ्यास है, हालांकि चीन इसे ‘वन बेल्ट-वन रोड’ परियोजनाओं से जोड़ना चाहता है। मात्र दो साल पहले शी जिनपिंग ने रंगून में आंग सू की सरकार के साथ 33 ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे और शी जिनपिंग की इस रणनीतिक यात्रा का प्रमुख उद्देश्य म्यांमार के क्यौकफ्यू बंदरगाह सुविधाओं को मजबूत बनाने के लिए 90 साल के प्रबंधन
अनुबंध पर हस्ताक्षर करना था। सू की शासन के स्पष्ट रोहिंग्या विरोधी दृष्टिकोण के बावजूद चीन ने ये ऋण स्वेच्छा से दिए थे। और अब सू की के शासन को सैन्य जुंटा ने अपदस्थ कर दिया है, पर जुंटा भी चीनियों से सहमत है।
चीनी नजर
यह स्पष्ट है कि एक संचार नेटवर्क की कल्पना मांडले और अक्याब बंदरगाह को क्यौकफ्यू से जोड़ने और अंततः बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करने वाले बंदरगाहों चटगांव और कॉक्स बाजार के साथ जोड़ने के रूप में की गई है। चीनी सामरिक योजनाकारों की नजर नदियों विशेष रूप से चटगांव हार्बर को जाने वाली मेघना नदी पर स्थापित अंतर्देशीय जलमार्ग नौवहन प्रणाली पर है। आइए, अब हम श्रीलंका के बंगाल की खाड़ी से जुड़ने वाले जलमार्ग पर गौर करें, जिसके कोलंबो और हम्बनटोटा के बंदरगाह बहुत लंबे समय से चीनी रडार पर हैं।
हैरान करने वाली बात यह है कि चीनी शासन की भूमिका की जांच पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चुप्पी साध ली है और महामारी से जुड़ी सूचना को अधर में लटका दिया है।
श्रीलंका के दक्षिणी सिरे पर स्थित हम्बनटोटा पर पहले से ही चीनियों का कब्जा है, जिनके ऋण का उपयोग हवाई अड्डे और बंदरगाह के विकास के लिए किया गया था। यह राजपक्षे शासन का सपना है और इसे उसने अपने पहले कार्यकाल में बनाया, जो सफेद हाथी बनकर उभरा है। हम्बनटोटा बंदरगाह के ऋण का भुगतान करने में असमर्थ पिछली सरकार को इसे नब्बे वर्षों के लिए एक चीनी कंपनी को पट्टे पर देना पड़ा था।
हालांकि एक रणनीतिक खतरे को भांपते हुए भारत सरकार श्रीलंकाई सरकार के साथ एक संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार हो गई थी, जिसमें विदेशी सेनाओं के लिए इस बंदरगाह के उपयोग पर रोक का प्रावधान था। लेकिन यह समझौते हमेशा गंभीर संदेह में रहता, क्योंकि ऐसी सूचना है कि राजपक्षे परिवार को चीनी कंपनियों से हवाई अड्डे और समुद्री बंदरगाह अनुबंधों के लिए रिश्वत मिली है।
अधिक चिंताजनक बात है, राजपक्षे सरकार के इशारे पर कोलंबो सी-पोर्ट का सब कुछ चीन को सौंपने के लिए श्रीलंकाई संसद द्वारा 20 मई, 2021 को पारित कानून। व्यापक विरोध और श्रीलंकाई सुप्रीम कोर्ट के विरोधी फैसले के बावजूद ऐसा किया गया था। यहां तक कि जब चीनी सरकार ग्वादर खाड़ी क्षेत्र में अपनी मुद्रा युआन को वैध बनाना चाहती थी, तब पाकिस्तान ने भी ऐसा समर्पण नहीं किया था। देश अपनी संप्रभुता नहीं बेचते हैं।
क्वाड समूह
यह मानना कि अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के क्वाड समूह की संभावित सक्रियता के चलते चीनी तेजी से कदम उठा रहे हैं, आंशिक रूप से ही सही हो सकता है। उस हिसाब से चीनी नौसैनिकों को चिंता हो सकती है कि बांग्लादेश और श्रीलंका में बंदरगाहों पर पैर जमाना शुरुआती चरण में उपयोगी होगा। लेकिन म्यांमार और बांग्लादेश, दोनों बहुत आसानी से नहीं मानेंगे और चर्चा में शामिल होंगे, क्योंकि वे अभी कोविड-19 से लड़ रहे हैं।
अब समय आ गया है कि भारतीय राज्य अपने पू्र्व की ओर देखने के अभियान को मजबूत करे।
बांग्लादेश के विदेश मंत्री पहले ही इस विषय पर चीनी मंत्री को उनके चेतावनी भरे लहजे के लिए फटकार लगा चुके हैं। चीनी नौसेना के लिए सबसे बड़ा कार्य दक्षिण चीन सागर में संचार के अपने समुद्री मार्गों की रक्षा करना होगा, जहां वह समुद्र के बड़े हिस्से पर दावा करता है। फिर भी यह उन्हें तब तक नहीं रोकेगा, जब तक वह श्रीलंका में अधिग्रहण का एक मामूली हिस्सा नहीं हासिल कर लेता है।
अब समय आ गया है कि भारतीय राज्य अपने पू्र्व की ओर देखने के अभियान को मजबूत करे। बांग्लादेश की स्थापना की 50वीं वर्षगांठ के वर्ष में बांग्लादेश के साथ राजनयिक संबंध परिपक्व हुए हैं और जिस पर भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा ने मुहर लगाई थी। इसके बाद भारतीय निर्मित कोरोना टीकों की बड़ी खेप भेजी गई और चीन से इसी तरह के टीके मंगाने के लिए बांग्लादेश को बड़ी रकम खर्च करनी पड़ी। म्यांमार को भी भारत ने बिना किसी कीमत के टीके उपलब्ध कराए हैं। इन सबसे ऊपर, आंग सान सू की सरकार के अपदस्थ होने पर भारत की चुप्पी के अपने फायदे होंगे।
-ये लेख पहले 3 जून, 2021, को www.amarujala.com पर छपा।
https://www.amarujala.com/columns/opinion/china-s-double-game-on-the-corona-pandemic-continues