क्या भारत ने चीन के साथ जिस सीमा जटिलता को सुलझाने का फैसला किया है, वह एक पहेली है, जो लगातार भारतीय शासन को परेशान करेगी? हालांकि भारतीय और चीनी कमांडरों के बीच फरवरी में हुई चर्चाओं की अगली कड़ी के रूप में तनाव खत्म करने की प्रक्रिया को बहुत तेजी से आगे बढ़ाया गया था और सैनिक अपने अग्रिम मोर्चे से पीछे हट गए थे। लेकिन वे अपने बैरकों में नहीं लौटे थे। इन गतिविधियों के बीच पैंगोंग त्सो से दोनों देशों के टैंकों की वापसी सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा था और तनाव की गर्मी को कम करने का संदेश देता था।
इस परिदृश्य का समर्थन करने के लिए दोनों तरफ से राजनीतिक स्तर पर बयान देकर सकारात्मक संदेश देने की कोशिश की जा रही है। सेना प्रमुख जनरल नरवणे ने हाल ही में हालांकि राष्ट्र को आश्वस्त किया है कि भारत ने चीन के हाथों कोई भी क्षेत्र नहीं गंवाया है।
और यहीं हम एक विरोधाभास का सामना करते हैं। अब तक भारत दशकों से पारस्परिक रूप से स्थापित प्रतिमान के जरिये चीनी शासन द्वारा स्वीकृत गैर-सीमांकित सीमा क्षेत्र को निरूपित करता रहा है। हमारे पेट्रोलिंग गंतव्य और बिंदु इन परिसरों पर आधारित थे और इसे चीनी सेना तथा चीनी सरकार के साथ साझा किया गया था। हालांकि इसके साथ ही, चीनी शासन हमेशा कुटिल मंशा से भारत को सीमा विवाद हल करने की अनुमति नहीं देता था। यह सब कुछ जून 2020 में बदल गया, जब गलवां घाटी में चीनी सैनिकों ने हमारे जवानों पर हमला किया, जो केवल गश्ती दल के स्थापित कर्तव्य का पालन कर रहे थे, हालांकि चीन ने जो कारण बताया, वह गलवां घाटी में सड़क निर्माण पर आपत्ति थी। वह क्षेत्र स्पष्ट रूप से भारत की सीमा में है।
अब यह स्पष्ट हो गया है कि संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए गलवां घाटी का इस्तेमाल किया गया था। हमने देखा कि इसके तुरंत बाद चीनी सेना ने महत्वपू्र्ण स्थानों पर कब्जा कर लिया-डेमचोक, उत्तर में पैंगोंग त्सो, घोगरा, हाल ही में तैयार हुए दरबुक-श्योक-डीबीओ रोड और अंततः देपसांग के मैदानों पर। यह घटना स्पष्ट रूप से डेमचोक, पैंगोंग त्सो और गलवां घाटी में फिर तेजी से बेहतर बुनियादी ढांचों के निर्माण का संकेत देती है और पैंगोंग त्सो तथा सबसे महत्वपूर्ण देपसांग के मैदानों में टैंकों की स्थिति को नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए। यदि भारत ने ऊंचाई पर रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण जगहों पर कब्जा न किया होता, तो इन शत्रुतापूर्ण कार्रवाइयों को बंद नहीं किया जा सकता था।
क्योंकि यहीं से पैंगोंग त्सो में चीनी सैनिकों की तैनाती के परिदृश्य की निगरानी की जा सकती थी और जहां से संघर्ष को ज्यादा बढ़ाए बिना भारतीय जवानों को विस्थापित करना बेहद मुश्किल होता? मुझे नहीं लगता कि वे युद्ध चाहते थे, जिसके लिए वे मानसिक रूप से तैयार नहीं थे। मेरा मानना है कि कोरोना महामारी से दुनिया का ध्यान भटकाने के लिए चीनी सैनिकों ने भारत के खिलाफ कार्रवाई की, क्योंकि अमेरिका, यूरोप और अन्य जगहों पर वायरस के प्रसार को बढ़ाने के लिए चीन उद्देश्यपूर्ण और आपराधिक रूप से जिम्मेदार है। ध्यान देने की बात है कि दो परमाणु हथियार संपन्न देश एक-दूसरे का मुकाबला करेंगे, तो निश्चित रूप से दुनिया भर में भय का माहौल बनेगा। चीन की भूमिका को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की जांच से धीरे-धीरे मीडिया का ध्यान हटाने के लिए चीनी शासन ने भारत-चीन संघर्ष का कार्ड खेला।
पैंगोंग त्सो से सैनिकों की वापसी को बढ़ावा देकर उसका उद्देश्य इस शर्त के साथ पूरा हो जाता है कि वे अभी घोगरा और देपसांग तथा कई अन्य जगहों पर टिके रहेंगे, ताकि दरबुक-श्योक-डीबीओ रोड की निगरानी कर सकें। तिब्बती पठार की प्यारी गर्मियों में मुस्कराते हुए उनके पास फैसला लेने के लिए छह महीने का समय है कि उन्हें कोई और विकल्प अपनाने की जरूरत है या नहीं। लेकिन लोकतांत्रिक, बहुलतावादी भारत को अपने नागरिकों, अपने क्षेत्र और लोकाचार की देखभाल करनी है। यह एक विस्तारवादी विरोधी के खिलाफ अपने सैनिकों को कम नहीं कर सकता है, जो 30 किलोमीटर दूर देपसांग के मैदानों में अपने कवच के साथ भारतीय बेस दौलत बेग ओल्डी पर नजर गड़ाए हुए है।
ऐसे परिदृश्य का सामना करते हुए भारतीय राज्य और भारतीय सशस्त्र बलों को बहुत समझदारी के साथ सतर्क रहना होगा, ताकि फिर से तत्परता के साथ अपने रणनीतिक कार्ड को खेल सके। चीनियों पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता, जिसके नेता शी जिनपिंग और चीनी सैन्य आयोग के अध्यक्ष अक्तूबर, 2020 में चीनी सैनिकों को युद्ध के लिए तैयार होने का संकेत दे रहे थे। उनके नेता और विशेष रूप से चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य भी वही राग अलाप रहे थे। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की वायु सेना ने ताइवानी हवाई क्षेत्र का अतिक्रमण कर लिया है और शत्रुतापूर्ण ढंग से युद्धाभ्यास कर रहे हैं। अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच चतुर्भुज सामरिक समूह (क्वाड) के गठन के लिए हाथ मिलाने की चीन में सार्वजनिक निंदा जारी की गई है।
अमेरिकी रक्षा मंत्री के भारत दौरे के तुरंत बाद मार्च के अंतिम हफ्ते में भारत और अमेरिका के नौसैनिकों ने पूर्वी हिंद महासागर में दो दिवसीय अभ्यास शुरू किया था। अमेरिकी रक्षा मंत्री, जो एक पूर्व सैनिक जनरल हैं, चीन की शत्रुतापूर्ण प्रतिक्रिया का उल्लेख कर रहे थे। इस मुद्दे का सार तत्व यह है कि चीनी शासन को उसकी विस्तारवादी कार्रवाई के खिलाफ वैश्विक चिंता और प्रतिशोध के बारे में एक स्पष्ट संदेश दिया जाना चाहिए। भारत सरकार को चीनी सरकार की तरफ से सकारात्मक प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं करनी चाहिए और अतीत की तरह सद्भावना प्रदर्शित करने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। कोरोना के प्रसार को बढ़ावा देने से संबंधित सभी जांचों को तेजी से मजबूती के साथ आगे बढ़ाया जाना चाहिए।
(-लेखक रणनीतिक मामलों के जानकार हैं।)
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