मैं कश्मीर हूँ,
लोग मुझे जन्नत भी कहते है,
पर क्या जन्नत किसी की जान ले सकती है?
नही! मुझे पर हुए सितम इतने,
न जाने क्यो मुझे नफरत ने है घेरा,
कश्मीरी पंडित भी मेरे और मुसलमान भी,
फिर क्यों दूर हुए यह? किसने जलाई नफरत की चिंगारी।
मैं कश्मीर हूँ,
बर्फ की चादर ओढ़े, ऊंचे पहाड़ो से घिरी,
वादियों में रहती हु मैं,
हा! शहज़ादी हु मैं!
मैं तो बर्फ सी ठंडी थी,
आग तुमने लगाई मुझ में,
जला दिया मुझे, छीन ली मेरी खुशी।
मैं कश्मीर हूँ,
झेलम नदी यहां, दल झील में खेलते बच्चे है,
प्रेमी जोड़े यहां आया करते है,
सेहत अच्छी रखने के लिए सेब यहां से जाया करते है,
फिर मुझसे इतनी नफरत क्यो?
मैंने तो बंता बस प्यार है,
मुझे तुमसे कुछ नही चाहिए,
बस लौटा दो मेरा अमन,
बना दो मुझे फिर से जन्नत,
हा! शहज़ादी हो मैं,
कश्मीर हूँ मैं!